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Part 1 — जाल और अचरज – मछवारा और जलपरी
Powerful Story Mermaid and Poor Fisherman – मोहन रोज की तरह मछली पकड़ने समुंदर पर गया। उसने बड़ा सा जाल समुद्र में फेंका और थोड़ी देर इंतज़ार किया ताकि ज़्यादा मछलियाँ जाल में आ सकें। जब उसने ज़ोर से जाल खींचना शुरू किया तो जाल बहुत भारी लगा — लग रहा था बहुत सी मछलियाँ फँस गई हैं। मुश्किल से जाल ऊपर आया।
मोहन ने देखा कि जाल में छोटी-छोटी मछलियों के साथ एक बड़ी और सुंदर मछली भी फँसी हुई है। मोहन खुश हुआ और बड़ी मछली के पास गया — लेकिन वह कोई साधारण मछली नहीं, एक जलपरी निकली — आधा शरीर मछली जैसा और चेहरा एक सुंदर औरत जैसा।

Part 2 — पहली मुलाक़ात और विनती
मछवारा और जलपरी – जलपरी उठकर बोली, “मैं कहाँ हूँ…?” मोहन ने बताया कि वह मछुआरा है और जाल में फँसी मछली पकड़ने आया था, और आप भी जाल में फँसी हो। जलपरी ने कहा कि वह समुंदर में रहती है और उसका एक बड़ा महल है; अचानक एक समुद्री राक्षस उन पर आ गया और वह उसे बचाकर भागी तभी जाल में फँस गई.
अगर मोहन ने उसे नहीं निकाला होता तो राक्षस उसे मार देता। जलपरी भयभीत थी और मोहन को धन्यवाद दिया; उसने कहा कि पहले उन्हें सुरक्षित जगह जाना चाहिए वरना राक्षस लौट आएगा।
Part 3 — घर पर सुरक्षा और करुणा
मछवारा और जलपरी – मोहन जलपरी को लेकर अपने छोटे से घर आया — घर टूटा-पुराना, छत से पानी टपकता, पुरानी चारपाई और एक चूल्हा ही था। मोहन की पत्नी फटी पुरानी साड़ी पहने सामने आई और पूछने लगी यह कौन है। मोहन ने सारी बात बताई। पत्नी ने चारपाई आगे करके दोनों को बैठने को कहा।
मोहन ने बताया कि वह गरीब मछुआरा है, मछली पकड़कर रोज की रोटी जुटाता है, और जो ज़्यादा पैसा आता है वह अपनी पत्नी के लिये दे देता है। जलपरी छू-सी गई और रो पड़ी कि कैसे कोई इतना छोटा घर होते हुए भी खुश रहता है जबकि वह बड़े महल में रहती थी। मोहन ने कहा घर छोटा हो या बड़ा, प्यार से रहना चाहिए। उस रात मोहन ने जलपरी को खाना दिया और सब सो गए।

Part 4 — राक्षस की बात और योजना
अगले दिन जलपरी उठी और बोली कि राक्षस का कुछ करना होगा। मोहन ने पूछा कि उसे कैसे रोका जाए। जलपरी ने कहा कि एक समुद्री राजा ने उस राक्षस को पहले एक छोटे से संदूक में बंद कर रखा था और उसे सज़ा दी थी ताकि वह वहीं रहे — पर किसी ने वह संदूक खोल दिया और राक्षस बाहर आ गया।
मोहन ने वादा किया — “मैं तुम्हें उस राक्षस के पास ले चलता हूँ, उसे फिर से संदूक में बंद कर दूँगा।” जलपरी ने डरते हुए पूछा कि क्या उसके पास कोई जादुई ताकत या हथियार है, और मोहन ने ईमानदारी से कहा कि उसके पास कुछ भी नहीं पर वह फिर भी कोशिश करेगा। जलपरी ने मोहन की ख्वाहिश और सच्चाई देख कर मान ली।

Part 5 — सामना और चालाकी
सुबह दोनों समुद्र की ओर चल पड़े। जलपरी मोहन को अपने महल तक ले गई और कहा कि वहीं थोड़ी देर छिपकर राक्षस का इंतज़ार करें। थोड़ी ही देर में एक बड़ा राक्षस आया और बोला कि वह कितनी जगहों पर जलपरी को ढूंढा है। मोहन ने कहा, “जब तक मैं हूँ तुम उसे कुछ नहीं कर पाओगे।” राक्षस हँसा और बोला कि क्या वह उसे मार सकेगा।
राक्षस ने जलपरी को पकड़ लिया और गुस्से में बोला कि वह तो कभी बाहर नहीं रहेगा — तब मोहन चालाकी से बोला, “सच? तो वही संदूक दिखाओ जिसमें तुम बंद थे।” राक्षस ने छोटा संदूक निकाल कर दिखाया। मोहन संदूक की छोटी सी गहराई देखकर शङ्का जताता है और राक्षस को उकसाता—राक्षस गुस्से में अंदर समाने लगा, और उसी समय मोहन ने संदूक का दरवाज़ा बहादुरी से बंद कर दिया और चाबी लगा दी। संदूक में गुस्से से राक्षस कैद हो गया।

Part 6 — इनाम और खुशहाली
जलपरी बहुत खुश हुई और मोहन को धन्यवाद कहा। उसने मोहन को सुनहरा हार (सोने का हार) देने का इरादा किया और कहा कि अब वह अपने महल में सुरक्षित रह सकती है। मोहन वापस अपने घर लौट आया और सब कुछ अपनी पत्नी को बताया। मोहन, उसकी पत्नी और जलपरी की कहानी यहीं सुखान्त पर पहुँची — मोहन की निस्वार्थ बहादुरी और प्यार ने सभी को सुरक्षित किया, और घर में खुशी छा गई।

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